• नये भवन से बिधूड़ी के भयानक संकेत

    पुराने भवन से नये भवन की ओर जा रही है', तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने यह उत्साह लोकतांत्रिक मर्यादाओं को ध्वस्त कर देने के लिये अर्जित किया है।

    पिछले सप्ताह जब भारतीय लोकतंत्र अपना ठिकाना बदल रहा था, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि 'संसद नये विश्वास, नये संकल्प और नयी ऊर्जा के साथ पुराने भवन से नये भवन की ओर जा रही है', तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने यह उत्साह लोकतांत्रिक मर्यादाओं को ध्वस्त कर देने के लिये अर्जित किया है। उसका सम्बन्ध उन सकारात्मक विचारों से बिलकुल नहीं है जो संसद के भीतर प्रदीर्घ तथा बाहर मीडिया के समक्ष संक्षिप्त उद्बोधनों के जरिये मोदी व्यक्त कर रहे थे। 18 से 22 सितम्बर तक आयोजित विशेष सत्र के चौथे दिन (जो सत्र का आखिरी दिन साबित हुआ क्योंकि उसे 21 को ही समेट दिया गया) की देर रात जब लोकसभा में चन्द्रयान की सफलता को लेकर चर्चा हो रही थी, सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के रमेश बिधूड़ी ने अमरोहा के लोकसभा सदस्य (बहुजन समाज पार्टी) दानिश अली को वह सब कुछ कह दिया जो असंसदीय तो था ही, बेहद शर्मनाक, अमानवीय और सीधे-सीधे आपराधिक कृत्य की श्रेणी में भी आता है। सदन के अध्यक्ष द्वारा दोबारा ऐसा करने पर कार्रवाई की चेतावनी देने और एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा बयान को अफसोसनाक कहकर बिधूड़ी को तो बचा लिया गया लेकिन उन्होंने जो कहा, वह साफ संकेत है कि भाजपा अपने नफरती एजेंडे के जरिये सामाजिक धु्रवीकरण करने के नूतन विश्वास एवं नवसंकल्प के साथ नये-नवेले भवन में आई है; और उसकी (नकारात्मक) ऊर्जा चरम पर है।


    बिधूड़ी का बयान कोई तैश में आकर या अनायास आया वक्तव्य नहीं है। अपनी कट्टरता के लिये पहचाने जाने वाले दक्षिण दिल्ली के ये सांसद भाजपा के उसी सम्प्रदाय के एक अनुयायी हैं जिनमें अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा, प्रज्ञा ठाकुर, नुपुर शर्मा, हिमंता बिस्व सरमा आदि हैं। इनके दिल में विरोधी राजनैतिक दलों व उनके नेताओं के अलावा सांप्रदायिक कट्टरता इतनी है कि गाहे-बगाहे उनका लावा फूटता रहता है। यह भाजपा का खाद-पानी है जिसके बल पर उसकी वोटों की खेती लहलहाती है इसलिये दिखावे के लिये कभी-कभार चाहे पार्टी नेतृत्व को उनकी निंदा करने वाला कोई बयान आ जाता हो, परन्तु ये पार्टी के लिये बेहद उपयोगी लोग हैं। पूरा नेतृत्व संसद के भीतर हो या बाहर, उन्हें बचाने में देर नहीं लगाता। कड़ुवे बोलने वाली नुपूर शर्मा व प्रवेश वर्मा को पार्टी ने 'फ्रिंज एलीमेंट' कहकर सुरक्षित निकाल लिया, तो प्रज्ञा ठाकुर द्वारा महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को 'देशभक्त' कहने पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने की बजाय मोदी ने इतना कहकर मामले पर मिट्टी डाल दी कि 'वे (प्रधानमंत्री) उन्हें (प्रज्ञा को) दिल से कभी माफ नहीं कर पायेंगे।' अब भी बिधूड़ी के खिलाफ कोई कार्रवाई न होना बतलाता है कि भाजपा का इन पर भरोसा व प्रेम कायम है।


    क्या यह गुस्सा परिस्थितिवश अचानक उबाल मार गया या यह सोची-समझी साजिश है? कहा जा सकता है कि दोनों का ही इसमें समावेश है। पिछले कुछ समय से भाजपा की केन्द्र सरकार की नाकामियां एक-एक कर सामने आ रही हैं। मोदी सरकार के तमाम फैसले निष्फल साबित हो चुके हैं, फिर वह चाहे उज्ज्वला योजना हो या मेक इन इंडिया या फिर स्टार्ट अप इंडिया। नोटबन्दी से लेकर जीएसटी के दुष्परिणाम भी लोगों को पता चल गये हैं। गौतम अदानी को लेकर भी मोदी-भाजपा कठघरे में हैं। हिन्दू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान, श्मशान-कब्रिस्तान से उब चुके लोगों को भौतिक ज़रूरतों का महत्व फिर से ज्ञात होने लगा है। भाजपा शासित राज्यों के मुकाबले कांग्रेस की सरकार वाले प्रदेशों में लोगों के बेहतर जीवन स्तर की लोगों को जानकारी मिल रही है। इसका परिणाम हिमाचल प्रदेश एवं कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में मिल चुका है। इतना ही नहीं, इसी माह हुए 7 उपचुनावों के नतीजों ने भी भाजपा की कमजोर होती जमीन का अंदाजा दे दिया है। मोदी की छवि सतत गिरावट दर्ज कर रही है तो उनके मुकाबले में राहुल गांधी मजबूत होते दिख रहे हैं। भाजपा के अनुमानों के विरूद्ध 28 दलों का विपक्षी गठबन्धन 'इंडिया' लगातार ताकत बटोर रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश के घोसी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी की बड़ी पराजय हुई। जी-20 से लेकर नये संसद भवन को लेकर जो कार्यक्रम बनाये गये थे, उनके अपेक्षित लाभ मोदी की छवि सुधारने की दिशा में नहीं मिल सके। इतना ही नहीं, महिला विधेयक के नाम पर मोदी ने महिला मोर्चे की ओर से चाहे अपना स्वागत-सत्कार करा लिया हो लेकिन देश जान चुका है कि यह छलावा मात्र है क्योंकि इसका लाभ 2029 के पहले महिलाओं को मिल नहीं सकेगा। यह सरकार खुद ही स्पष्ट कर चुकी है। अपनी पार्टी व नेता की गिरती छवि के साथ मिलती असफलताओं से क्षुब्ध बिधूड़ी द्वारा एक अल्पसंख्यक सांसद को उग्रवादी, मुल्ला, कटुआ, बाहर देख लेने की धमकी देना उसी भड़ास का निकलना है।


    दूसरी ओर, यह वर्षों से भाजपा एवं उसकी मातृ संस्था मोदी की मुस्लिम विरोधी मानसिकता का भी परिणाम है। बिधूड़ी जो बोले, इन संस्कारों से पोषित-प्रशिक्षित जमात वर्षों से कहती आई है। फर्क इतना सा है कि अब की यह बात ऐसे मंच से कही गई है जहां मर्यादाओं का पालन अब भी थोड़ा-बहुत होता है, शर्म-ओ-हया फिर भी शेष है, लिहाज होता है। जिस पार्टी का प्रधानमंत्री लोगों को कपड़ों से पहचान लेने की बात करता हो, चुनावी मैदान में 80 बनाम 20, गौमाता या बजरंग बली के फार्मूले लेकर उतरता हो, उसके एक सिपहसालार से यही उम्मीद की जा सकती है। बहुमत के बल पर बिधूड़ी को तो बचाया जा सकता है, पर लोकतंत्र को नहीं! बिधूड़ी ने ये भयावह संकेत दिये हैं।

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